वही चुनावी पैंतरे, वही पुराने झूठ
छाया,फल की आस क्या, उनसे जो हैं ठूंठ
जो दुख मारें और के, वे ही हैं अरिहंत
जो अपना स्वारथ भरें वे काहे के संत
अधर लपेटे चाशनी, ह्रदय धरें दुर्भाव
भरें न पूरी जिन्दगी कटु बैनन के धाव
ज्ञान अहम् का जनक है, विनय ज्ञान का रत्न
जानें जो मानें नहीं सबसे बड़े कृतघ्न
कुए, बावड़ी, ताल सब जितने थे जलस्रोत
मरे शरम से देखकर, बोतल पानी ढोत
विद्या के मंदिर बने जबसे धन की खान
कलपुर्जों में ढल गये सब जीवित इंसान
हुआ दस गुना मूल से बढ़ते-बढ़ते सूद
देते-देते हो गया खुद का खत्म वजूद
संघर्षों का आदि है, मगर नहीं है अंत
एक अकेला आदमी, चिंता घणी अनंत
फागुन के रंग में रंगे फगुआ गावें फाग
जलधारा के बीच में, टेसू बरसे आग
मार प्रेम की खा रहे गलियन बीच अहीर
लट्ठ चलावें गूजरीं, ढाल धरे हिय वीर
बेला, जुही, गुलाब हों या कनेर के फूल
होरी के इस पर्व में क्षमा सभी की भूल
कालिंदी केसर हुई, धूरा हुई गुलाल
नंदगाँव को स्याम रंग बरसाने में लाल
नयन गुलाबी, अधर पर मंद-मंद मुस्कान
हुरियारों के हिय लगे गूजरियों के वान
बरजत-बरजत भी करें रंगों की बौछार
ग्वालिनियाँ ये विरज की बघ्ी तेज तर्रार
जीवन में घटती बहुत घटनाएं अज्ञात
कुछ हर्षाती ह्रदय को कुछ देतीं आघात
माथे पर क्या लिख दिया उसने, समझे कौन
नगर ढिंढोरा पीटिये या फिर सहिये मौन
नदी कहाँ है जानती, कहाँ बहेगी धार
टेढ़े-मेढ़े रास्ते, उस पर तेज वयार
कंगूरे नृप हो गए, दास नींव पाषाण
सम रथियों के चोचले,स्वारथ के गुणगान