चित्र सौजन्य -googal
- :: गीत :: -
सबके दिन फिरते हैं,
तू क्यों इतना
निराश मन है रे!
बड़ी-बड़ी
लहरें तट को छूकर
रोज गुज़र जाती हैं
रेतीली
आकृतियां बनती हैं
और बिखर जाती हैं
पर हठी समंदर के
आगे अपराजित सर्जन है रे!
जीवन का
हर पल संभावना
नई लिए आता है
फूटता नया अंकुर
जीर्ण पात
जब भी झर जाता है
संशय में
हारे मनुष्य का
आशा आलंबन है रे!
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