Tuesday, October 30, 2012

महुआ के जंगल न कटें मोरे राम -लोक धुन पर रचा एक गीत



महुआ के जंगल 

- रमेश तैलंग 




जिए  तोरी बरखा, जिए तोरा घाम,
महुआ के जंगल न कटें मोरे राम!

कुएं में डूबे जा कर कुल्हाड़ी,
छीने न कोई हमारी  दिहाड़ी,
बापू का दोना और पातर का काम. 
महुआ के जंगल न कटें मोरे राम!

जबसे सुना है कि सारी बजरिया 
जंगल पे डाले है काली नजरिया
जीना ही अपना हुआ है हराम.
महुआ के जंगल न कटें मोरे राम!

हाकिम न  जाने दिहाड़ी, मजूरी,
हाकिम तो जाने जी, बस जी-हजूरी 
हाकिम को प्यारे हैं दमड़ी और चाम
महुआ के जंगल न कटें मोरे राम!



चित्रा सौजन्य: गूगल 

Monday, October 29, 2012

नव साक्षरों के लिए एक सहगान



पहला कदम 
-रमेश तैलंग 

ज्ञान पथ पर रख दिया अब हमने भी पहला कदम
लो, हुई अज्ञान की सत्ता खतम, सत्ता खतम.

न मन में कोई शोक अब.
न पथ में कोई रोक अब.
फैला हुआ  है हर तरफ
आलोक ही आलोक अब.
ज्ञान पथ पर रख दिया अब हमने भी पहला कदम
लो, हुई अज्ञान की सत्ता खतम, सत्ता खतम.

दूर सारे डर हुए . 
शिक्षा के नव अवसर हुए 
हैं हम अकेले अब कहां,  
साथी सभी अक्षर हुए 
ज्ञान पथ पर रख दिया अब हमने भी पहला कदम
लो, हुई अज्ञान की सत्ता खतम, सत्ता खतम.

सोई किस्मत जागेगी
परतंत्रता अब  भागेगी
वंचित रही जो आत्मा, 
अधिकार अपना पाएगी . 
ज्ञान पथ पर रख दिया अब हमने भी पहला कदम
लो, हुई अज्ञान की सत्ता खतम, सत्ता खतम.


photo credit: google search 






Wednesday, October 10, 2012

कुछ ख्वाब थे आंखों में








कुछ ख्वाब थे आँखों में, अधूरे ही रह गए.
सुर न मिला तो मौन तमूरे ही रह गए.
बाजीगरी का फन न जिन्हें रास आ सका, 
वे  ज़िन्दगी में सिर्फ जमूरे ही रह गए.
सिर पर उठाया मैल जिन्होंने समाज का,
ताउम्र वे समाज में  घूरे ही रह गए.
दुःख-दर्द पे पहले तो किताबें लिखी गईं,
फिर बाद में किताबों के चूरे ही रह गए.
अधनंगों की किस्मत में और कुछ नहीं बचा, 
बस काटने को कान-खजूरे ही रह गए.


चित्र सौजन्य: गूगल सर्च