Wednesday, March 5, 2014

राग-विराग -जुगलबंदी : (कुछ दोहे कुछ गीत) 5 मार्च, 2014



आज किवरियां न खोल रे!

फागुन में मन डांवाडोल रे!
ए सखि!
आज किवरियां न खोल रे!

बौराई भोर और  
पागल पवन है 
आंखों से दूर बसा 
मेरा  सजन है
ऐसे में कैसी कलोल रे!
ए सखि!
आज किवरियां न खोल रे!

खेलूं होरी कैसे] 
रूह ही प्यासी
रंगों पे छाई है 
आज  उदासी   
भाएं न टेसू के बोल रे
ए सखि!
आज किवरियां न खोल रे!

ताने दे दुनिया जो
विरहा  मैं गाऊं]
तू ही बता  कैसे 
फागुन मनाऊं
वैरी-सा लागे हिंडोल रे! 

ए सखि!
आज किवरियां न खोल रे!

-रमेश तैलंग 






  

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