Monday, November 12, 2012

आज बस इतना ही....'दीप-पर्व' आपको मंगलमय हो.





एक बेल रोशनी की जब से चढी है छत पर
छत ले रही बलैयां बाहों में उसे भर-भर.

कोई खुशी अचानक उतरी है आसमां से 
बच्चे के हाथ आए जैसे पतंग कट कर.

ढलते ही शाम सूनी देहरी के भाग जागे,
कोई अभी गया है नन्हा-सा दीप रख कर.

ओ चांद, मेरे वीरा, अब तो जरा बता दे,
मेले में खो गया तू हमसे कहां बिछड़ कर?

दरवाजा खोले चौपट है नाच रही बिटिया 
आएंगी लच्छमी घर, आएंगी लच्छमी घर.

-रमेश तैलंग 



चित्रा सौजन्य: गूगल 

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