एक बेल रोशनी की जब से चढी है छत पर
छत ले रही बलैयां बाहों में उसे भर-भर.
कोई खुशी अचानक उतरी है आसमां से
बच्चे के हाथ आए जैसे पतंग कट कर.
ढलते ही शाम सूनी देहरी के भाग जागे,
कोई अभी गया है नन्हा-सा दीप रख कर.
ओ चांद, मेरे वीरा, अब तो जरा बता दे,
मेले में खो गया तू हमसे कहां बिछड़ कर?
दरवाजा खोले चौपट है नाच रही बिटिया
आएंगी लच्छमी घर, आएंगी लच्छमी घर.
-रमेश तैलंग
चित्रा सौजन्य: गूगल
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