Sunday, April 13, 2014

आज बस इतना ही ....14 अप्रैल, 2014



मलवे का तसला सिर पर ढोते देखा
उस औरत को  हमने न रोते देखा 

कभी मोम की गुडिया कहलाती होगी 
आज उसे लोहा-पत्थर होते देखा 

जिनमें बहती थी आंसू की नदी कभी 
उन आँखों में अब सपने बोते देखा 

रोज उजड़ना, बसना उसकी  कथा रही 
जब देखा विस्थापित ही होते देखा 

जीवन में जाने क्या-क्या खोया उसने 
स्वाभिमान की धज को न खोते देखा

-रमेश तैलंग

pic.credit: Google  search