फ़ल में ही बीज था और बीज में फ़ल था।
इस आज में आता हुआ, जाता हुआ कल था।
जब गौर से देखा तो, चुधियां गईं आंखें
जल में थी अगन और अगन में छुपा जल था।
जिस सूत्र को लोगों ने हंसी में उड़ा दिया
उस सूत्र में जगत का रूप अष्टकमल था।
गूंगे में थी वाचालता, वाचालता में मौन
ये सत्य था कि दृष्टिभ्रम या और ही छल था।
बेचैन रहा जिसको पकड़ने में, सदा मैं
गतिमान काल में कहीं ठहरा हुआ पल था।
- रमेश तैलंग
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