Friday, February 28, 2014

जुगलबंदी (कुछ दोहे कुछ गीत) 1 मार्च, 2014



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:: गीत ::

क्या कासी, क्या मथुरा, बरसाना!
मन रमे जहां, वहीं रम जाना.

सिर पर 
लादे-लादे सरदारी 
बहुत दिन
निभा ली दुनियादारी 
उलझता गया हर ताना-बाना.

चूर-चूर 
थकन से भरी पांखें 
देख-देख 
छलकती रहीं आंखें
भीगता रहा हर पल सिरहाना.

कब हुआ,  
वसंत सा वसंत लगा
जीवन भर
दुःख ही जीवंत लगा 
लौट-लौट खूंटे से बंध जाना. 

- रमेश तैलंग 




1 comment:

  1. 'उलझता गया हर ताना-बाना ---- लौट-लौट खूंटे से बंध जाना. ' आपकी जुगलबंदी मन को छूती हैं

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