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:: गीत ::
क्या कासी, क्या मथुरा, बरसाना!
मन रमे जहां, वहीं रम जाना.
सिर पर
लादे-लादे सरदारी
बहुत दिन
निभा ली दुनियादारी
उलझता गया हर ताना-बाना.
चूर-चूर
थकन से भरी पांखें
देख-देख
छलकती रहीं आंखें
भीगता रहा हर पल सिरहाना.
कब हुआ,
वसंत सा वसंत लगा
जीवन भर
दुःख ही जीवंत लगा
लौट-लौट खूंटे से बंध जाना.
- रमेश तैलंग
'उलझता गया हर ताना-बाना ---- लौट-लौट खूंटे से बंध जाना. ' आपकी जुगलबंदी मन को छूती हैं
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