मेरे प्रिय मित्र कृष्ण शलभ ने हिंदी बाल कविताओं का जो वृहत भंडार "बचपन एक समंदर" (प्रकाशक-नीरजा स्मृति बाल साहित्य न्यास –सहारनपुर) में संजोया है वह अपने आप में एक ऐसा अप्रतिम एवं दुष्कर कार्य है जिसे उन जैसा धुनी लगन वाला व्यक्ति ही संपन्न कर सकता है. क्या प्रशंसा करूं, शब्द ही नहीं हैं. उनके इस दुस्साध्य कार्य के पीछे निस्संदेह कुछ और व्यक्तियों का भी श्रम रहा होगा पर मेरा उद्देश्य यहाँ इसकी पृष्ठभूमि में जाना नहीं है वरन कुछ ऐसे बिंदुओं पर प्रकाश डालना है जो पंडित श्रीधर पाठक जी तथा श्री बाल मुकुंद गुप्त की बाल कविताओं से सम्बंधित हैं.
पंडित श्रीधर पाठक जी की लगभग सभी बाल कवितायेँ उनके काव्य संग्रह मनोविनोद के बाल विलास में संग्रहीत हुई हैं. भाई कृष्ण शलभ ने "बचपन एक समंदर " की भूमिका में जिस ग्रन्थ को आधार बनाया गया है वह है: (मनोविनोद, स्फुट कविता संग्रह, बालविलास खंड, श्रीधर पाठक, १६ से २३, नवल किशोर प्रेस) जबकि श्रीधर पाठक जी के पौत्र डॉक्टर पद्मधर पाठक द्वारा सम्पादित तथा गिरधर प्रकाशन, ८ अशोक नगर, बांसमंडी, गौतम बुध मार्ग, लखनऊ से प्रकाशित श्रीधर पाठक ग्रंथावली खंड २ के बाल विलास पृष्ठ २८९-३०१ में पाठकजी की बाल कविताओं का जो रचना काल प्रकाशित है वह कृष्ण शलभ जी के ग्रन्थ में दिये गए रचनाकाल से भिन्न है.
मैं यहाँ कृष्ण शलभ जी के ग्रन्थ की भूमिका में उद्धृत रचना काल के समक्ष पद्मधर पाठक जी के ग्रन्थ में दिए गए रचनाकाल का भी उल्लेख कर रहा हूँ जिससे स्थिति स्पष्ट हो जायेगी:
क्र.स. कविता कृष्ण शलभ के ग्रन्थ में पद्मधर पाठक के ग्रन्थ में
रचना तिथि रचना तिथि
१. उठो भई उठो ०८-०८-१९०६ ०८-०४-१९००
२. धूप आ गई ०८-०८-१९०६ शामिल नहीं है.
३. बिल्ली के बच्चे ०८-०८-१९०६ ०८-०४-१९०६
४. मैना २६-०७-१९०१ २६-०१-१९०९
५. चकोर १६-०७-१९०९ २६-०१-१९०९
६. मोर १२-०८-१९०९ १२-०८-१९०१
७. कुक्कुटी १२-०८-१९०९ ०२-०८-१९०१
इनके अलावा कृष्ण शलभ द्वारा उल्लिखित तीतर, और कौआ कविताओं पर पाठकजी द्वारा दी गई रचना तिथि ०९-०८-१९०७ है.
यह आश्चर्य की बात है कि गुड्डी लोरी कविता श्रीधर पाठक ग्रंथावली-खंड दो में नहीं है जबकि कृष्ण शलभ ने इसे पाठकजी की उल्लेखनीय बाल कविताओं में माना है. इस ग्रन्थ के अनुसार पाठक जी की सबसे ज्यादा चर्चित बाल कविता “बाबा आज देल छे आये, ११-०१-१९२८ की रचना है. इन बाल कविताओं के अलावा पाठक जी की एक और उपदेशात्मक बाल कविता है : कभी मत जिसकी कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:
बालको कभी लड़ो मत. रार में पडो कभी मत.
भ्रात से भिडो कभी मत. बात से चिडो कभी मत ......
यह रचना १२-१२-१९२७ की है.
इसमें संदेह नहीं कि श्रीधर पाठक जी की बाल कविता उठो भई उठो, की रचना तिथि पद्मधर पाठक द्वारा सम्पादित ग्रंथावली के अनुसार ०८/०४/१९०० मान ली जाए, तो वह पाठक जी की सबसे पहली बाल कविता ठहरती है.
अब जहाँ तक श्रीधर पाठक को हिंदी का पहला बाल कवि मानने का सवाल है तो इस पर मतभेद हो सकता है. इस सम्बन्ध में पहले निरंकार देव सेवक रचित बालगीत साहित्य से उद्धरण देख लें : “हिंदी में पहला बालगीत कब लिखा गया यह तो कोई खोज करके ही निश्चित बता सकता है . प्रमुख बाल गीतकार कवियों में पंडित श्रीधर पाठक, बालमुकुंद गुप्त, अयोध्याप्रसाद सिंह उपाध्याय “हरिऔध” और सुखराम चौबे “गुणाकर” समकालीन थे. इनमे पंडित श्रीधर पाठक और बाल मुकुंद गुप्त ने सबसे पहले लगभग एक ही समय में बच्चों के लिए भी कविताएं लिखना प्रारंभ किया था. श्रीधर पाठक बड़ों के एक सुविख्यात कवि होने के साथ बच्चों के कवि के रूप में प्रकाश में आए . प्राप्त जानकारी के अनुसार उन्होंने ही सबसे पहले स्वतंत्र रूप से मनोरंजक बालगीत लिखे. इसलिए उन्हें ही हिंदी का पहला बाल गीतकार कवि माना जा सकता है.” – पृष्ठ-१३०
पर यहाँ कृष्ण शलभ जी की भूमिका का पृष्ठ ११ पर प्रकाशित यह पैराग्राफ भी ध्यातव्य है.:
“ बालमुकुंद गुप्त जी की बाल कविता “खिलौना: का प्रकाशन उन्नीसवीं शताब्दी में हो चुका था. क्योंकि हिंदी शिक्षावली की प्रत्यालोचना २९ जनबरी सन १९०० के “भारत मित्र” में हुई. इससे पूर्व पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा इसकी आलोचना १८९९ में हो चुकी थी, जो मर्चंट प्रेस रैलिगंज कानपुर से मुद्रित हुई थी.”...........
“बाल कविता के बाल सुलभ मिजाज़ और संरचना की दृष्टि से बालमुकुंद गुप्त जी की कविता “गिलहरी का ब्याह” की पंक्तियाँ जो बच्चों की भावनाओं से सटकर रची गई हैं, गुप्त जी की सृजन सामर्थ्य का पता देती हैं . इस कविता का प्रारंभ ही बाल-कविता के स्वर को प्रकट करने के लिए पर्याप्त है:
“धम-धमा-धम ब्याह गिलहरी का है सुनिए आज.
आसान पोथी लेकर चली, पंडित जी महाराज.”
................यहाँ उल्लेखनीय है कि “खिलौना” और “खेल-तमाशा” का प्रकाशन १८९९ का है. स्पष्टतः गुप्त जी की बाल कविता पुस्तकें उन्नीसवीं शताब्दी में ही प्रकाशित हो चुकी थीं.”.........
शलभ जी की पुस्तक में दिए गए उक्त उद्धरणों से स्पष्ट हो जाता है कि श्री बाल मुकुंद गुप्त की खिलौना/गिलहरी का ब्याह पाठक जी की पहली बाल कविता उठो भई उठो से पूर्व में प्रकाशित हो चुकी थी इसलिए गुप्त जी को हिंदी का पहला बाल कवि मानने में किसी को एतराज नहीं होना चाहिए. यह और बात है कि गुप्त जी की इस/इन बाल कविता/ओं पर पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी ने व्याकरण सम्बन्धी दोष लगाया था और इस पर पाठकजी, द्विवेदीजी, तथा एक सज्जन राजाराम का तीखा पत्र व्यवहार हुआ था. जिसका उल्लेख कृष्ण शलभ जी की पुस्तक “ बचपन एक समंदर” के पृष्ठ १३ पर मौजूद है.
पंडित श्रीधर पाठक और श्री बाल मुकुंद गुप्त में से कौन हिंदी का पहला बाल कवि हसी, जैसे प्रश्न पर कुछ पाठकों को लग सकता है कि भई आप आम खाओ, गुठलियों को गिनने में क्यों सिर खपा रहे हो. पर मुझे लगता है कि शोधार्थियों के लिये यह एक बहुत ही महत्त्व पूर्ण विषय है.
जहाँ तक श्रीधर पाठक जी की बाल कविताओं की सही रचना तिथि का सवाल है, मेरी दृष्टि में डॉक्टर पद्मधर पाठक के ग्रन्थ को ही प्रामाणिक माना जाना चाहिए क्योंकि वे स्वयं श्रीधर पाठक के पौत्र तो हैं ही और न केवल शोध-दृष्टि संपन्न विद्वान हैं बल्कि एक प्रतिष्ठित शोध संस्थान के पूर्व निदेशक भी रहे हैं.
तैलंग जी की बातों में काफी दम नज़र आ रहा है!
ReplyDelete--
मैं नागेश जी को इस आलेख का लिंक भेज रहा हूँ!
वे कुछ बेहतर जानकारी दे सकते हैं!
सर्वप्रथम भाई रवि जी का आभारी हूँ जिन्होंने इस महत्वपूर्ण लेख का अध्ययन कराया .
ReplyDeleteअग्रज रमेश तैलंग जी का भी हार्दिक आभार जिन्होंने इस शोधोपयोगी विषय के साथ कई विचारणीय प्रश्न उठायें हैं .
पहले बाल कवि का यह मुद्दा बहुत पुराना है , हिंदी बाल साहित्य के आदि समीक्षक निरंकार देव सेवक जी इस विषय पर अपने ग्रन्थ ''बाल गीत साहित्य'' (प्रकाशन वर्ष - 1966, प्रकाशक - किताब महल , इलाहाबाद ) में विस्तार से लिख चुके हैं . उन्होंने श्रीधर पाठक जी को उनकी बाल कविताओं की सरलता , सहजता और रोचकता को लेकर पहला बाल कवि माना है .
मैंने भी इस विषय पर अपनी समीक्षा कृति ''बाल साहित्य के प्रतिमान'' में चर्चा की है . (प्रकाशक - बुनियादी साहित्य प्रकाशन ,रामकृष्ण पार्क , अमीनाबाद , लखनऊ , मो. नं. -९४१५००४२१२ ).
ग्रन्थ (''बाल साहित्य के आयाम'' , -डा.धर्मपाल , आलोक पर्व प्रकाशन , दिल्ली ) में पहला बाल कवि नाथूराम शर्मा शंकर को माना गया है .
... फ़िलहाल एकदम शुरुआत से देखें और आदिकाल के कवि अमीर खुसरो की इन पहेलियों को याद करें -- एक थाल मोती से भरा , सबके सर पर औंधा धरा .या फिर.. एक पहेली मैं कहूँ सुन ले मेरे पूत . बाँध गले में उड़ गयी सौ गज लम्बा सूत . या बीसों का सर काट लिया , ना मारा ना/खून किया .(ग्रन्थ : अमीर खुसरो और उनका हिंदी साहित्य , भोला नाथ तिवारी , प्रभात प्रकाशन , दिल्ली, प्र. 62 ) .
तो क्या यह खड़ी बोली के निकट बाल मन की सरल और श्रेष्ठ रचनाएँ नहीं हैं ? .. और इससे हमारे हिंदी बाल साहित्य की अवधि भी दीर्घकालीन सिध्द होती है .
हिंदी साहित्य में आज अमीर खुसरो को खड़ी बोली के प्रवर्तक / उन्नायक के रूप में मान्यता प्राप्त है . हमें भी साधिकार और बड़े ही गौरव के साथ उन्हें पहले बाल कवि के रूप में स्वीकार करना चाहिए .
http://abhinavsrijan.blogspot.com/
मैं आदरणीय तैलंग जी के सन्दर्भों से पूर्णत सहमत हूँ क्योंकि वह एक समर्पित विद्वान् और प्रमाणिक अभिलेख के माध्यम से प्रस्तुत किये गए हैं . साभार , नागेश
ReplyDeleteधन्यवाद भाई रावेंद्र रवि एवें नागेश जी. इस लेख में मैंने सिर्फ सन्दर्भ दिए हैं. उचित निर्णय तो सुधी एवं विज्ञ शोधक ही करेंगे. बाल साहित्य के विद्वतजनों में डॉ. हरी कृष्ण देवसरे, डॉ. प्रकाश मनु,डॉ. सुरेन्द्र विक्रम जैसे उपस्थित हैं. उनके दृष्टिकोण एवं विचार भी इस दिशा में मार्गदर्शन करेंगे. फिलवक्त आप सभी का ह्रदय से आभार.
ReplyDeleteधन्यवाद भाई साहब . आपने एक अच्छा मुद्दा उठाया है .
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