Showing posts with label aashadh. Show all posts
Showing posts with label aashadh. Show all posts
Friday, June 24, 2011
फूलन के खम्भा पाट, पटरी सुफूलन की
आषाढ़ शुरू हो गया, श्रावण भी रस्ते में है. प्रकृति का चक्र चल रहा है अपने ढंग से. कहीं सूरज दहक रहा है तो कहीं झडी लग गई है बारिश की.लोक की जिस उत्सवधर्मिता को सूरज दहक-दह्क कर राख करने पर उतारू है उसे हरियाले सावन की बौछार पूरे जी-जान से बचाने में लगी हुई है.आपको कुछ दिखाई नहीं दे रहा है न?कोई बात नहीं.
ज़रा कंक्रीट के जंगल को भूल कर प्रवेश कर जाईए उन वन-प्रांतरों में. जहाँ दो महीनों के लिए ही सही, मनुष्य के कोप से बचे हुए मोर्, कोयल, पपीहा, वृक्ष, फूल, पात सभी प्रफुल्लित हो रहे हैं
जहाँ उत्सवधर्मिता में आकंठ डूबीं गलियों, मंदिरों, चौबारों, में भक्ति काल एक बार पुनः जीवित हो उठा है और बृज के किशोर और किशोरीजी के लिए फूलों, लताओं और गोटे-किनारी वाली रज्जुओं से रंग-बिरंगे, छोटे-बड़े हिंडोरे सजाये जा चुके हैं और उन्मुक्त आकाश में गूँज रहे हैं हिंडोरा-गीतों के मनभावन स्वर.
लीजिए आप भी आनंद लीजिए हिन्दुस्तानी संगीत के जीवंत रागों में बद्ध इन पारंपरिक, भूले-बिसरे हिंडोरा-गीतों का:
-----------------------------------------------------------------------------------------------
राग खेमटा :: युगल वर झूलत, दे गर बाँही /
बादर बरसे, चपला चमके, सघन कदम की छाँही/
इत-उत पोंग बढ़ावत सुंदर, मदन उमंग मन माहीं/
ललिताकिशोरी, हिंडोरा झूलें, बढ़ यमुना लौं जाही/
राग झिन्झोंटी:: बांकी छबि सों झूलत प्यारी/
बांकी आप, बिहारी बांके, बांकी संग सुकुमारी/
बांकी घटा घिरी इत चमकन, चपला हूँ की न्यारी/
ललिताकिशोरी बांकी मुस्कान, बंक पोंग पर वारी/
राग पीलू:: मेरो छांड दे अंचरवा, मैं तो न्यारी झूलोंगी/
झोंकन के मिस मोहन लंगारिया, अजहूँ टहोकत ना भूलोंगी/
ललिता संग रंगीले झूलें, झूल मनहिमन फूलोंगी/
ललितकिशोरी तरल पोंग कर, लालन तो संग तूलोंगी/
राग दादरा:: सुन सखी आज, झुलन नहिं जैहों/
श्यामसुंदर पिया रस लम्पट हैं, अति ही ढीठ यों देत/
झोका तरल करे पाछेते, धाय भुजन भर लेत/
चितवन चपल चुरावत अनतै, हमें जनावत नेह/
रसिकगोविंद अभिराम श्यामसंग, क्यों न जाय रस लेह/
कवित्त:: फूलन के खम्भा पाट, पटरी सुफूलन की,
फूलन के फूंदने फंदें हैं लाल डोरे में/
कहै पद्माकर वितान ताने फूलन के,
फूलन की झालरें सुझूलत झकोरे में/
फूल रही फूलन सु फूल फुलवारी तहां,
और फूल ही के फर्श फबे कुञ्जकोरे में/
झूल्झारी फूल्भारी फूलझरी फूलन में,
फूल ही सी फूल रही फूल के हिंडोरे में/
Labels:
aashadh,
hindola,
hindora geet,
lalitkishori,
padmakar,
rasik priya
Subscribe to:
Posts (Atom)