ये माना, उनमें बड़ी जान हुआ करती है।
समुंदरों को भी थकान हुआ करती है।
उछाल भरती हुई लहरें आसमां छू लें
ये चार पल की दास्तान हुआ करती है
शिखर पे जा के खुशी हो बुरा नहीं लेकिन
शुरु वहीं से हर ढलान हुआ करती है।
जो ज़ुल्म सह के भी चुप हैं, ये भूल मत जाना
कि उनके मुँह में भी ज़बान हुआ करती है।
वो दूसरों का दर्द अपना ही समझते हैं
अदीबों की यही पह्चान हुआ करती है।
- रमेश तैलंग
No comments:
Post a Comment