सिंहासन चढ़ कें न इतराइयो
हो जी मुकुटधारी!
एक दिन उठाई थी हम सबने
मिलकर गंगाजली
निर्बल की सत्ता के आगे सब
हारेंगे महाबली
अपना यह कौल नहीं बिसराइयो
हो जी मुकुटधारी।
जिस दिन से क्रत्रिम सुगंधों की
भरमार हो गई
अस्मिता पसीने की गंध की
तार-तार हो गई
ई सें तो अच्छो है मरजाइयो
हो जी मुकुटधारी।
ज्यादा क्या मांगें, बस हर घर का
चूल्हा जलता रहे
निरवंसी आंखों में भी मीठा
सपना पलता रहे
एक भलो काम यही करजाइयो
हो जी मुकुटधारी!
- रमेश तैलंग : 17-03-2015
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