जादू की छड़ी हो तो एक बार घुमा दूं
दुनिया के सारे दर्द अपने नाम लिखा दू
यूं तो कभी मिलते नहीं नदी के किनारे
यादों का एक पुल ही, चलो, इन पे बना दूं
आंखों से हमारी कभी रुकते नहीं आंसू
कोई बताए इस कसूर की क्या सजा दूं
आधी पड़ी है रात, और कंपकंपाती लौ,
आ ज़िंदगी, तुझे मैं आज दिल से दुआ दूं
है पास नहीं कुछ सिवाय ख्वाहिशों के अब
कह दे तो आखिरी ये खजाना भी लुटा दूं
- रमेश तैलंग
kya khoob kaha hai
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