-1-
जहां उम्मीद थी ज्यादा वहां से खाली हाथ आए.
बबूलों से बुरे निकले तेरे गुलमोहर के साए.
मैं अपनी दास्ताँ तुझको सुनाता किस तरह बोलो,
कलेजा मुंह को आया और कभी आंसू निकल आए .
उदासी है कि पीछा छोडती ही है नहीं मेरा
कोई बैठा रहे कब तक दुआ में हाथ फैलाए?
सुबह से काम पर निकला है बेटा, और मां का मन
हिलोरें ले रहा है, लौट कर वो जल्दी घर आए.
किसी चेहरे को पढ़ना है अगर तो गौर से पढ़ना
कहीं ऐसा न हो सहरा भी दरिया-सा नज़र आए.
हजारों लम्हे जी कर जिंदगी का ये मिला हासिल
तसल्ली से न जी पाए, तसल्ली से न मर पाए.
-2-
मेरे जज्बात में जब भी कभी थोड़ा उबाल आया
कभी बच्चों की चिंता तो कभी घर का खयाल आया
पुरानी बंदिशें थीं या पुरानी रंजिशें थी वो
मेरी पूंजी का हिस्सा थीं, करीने से संभाल आया .
इसे हालात से समझौता करना, चाहो तो कह लो,
जगी मरने की ख्वाहिश तो उसे भी कल पे टाल आया.
मैं ऐसा हूं तो क्यों ऐसा ही हूं, हर पल मेरे आगे.
पलट कर बारहा वो ही पुराना-सा सवाल आया.
किसी को चाहा तो अच्छा-बुरा कुछ भी नहीं देखा,
बड़ी मुश्किल से अपनी जिंदगी में ये कमाल आया
-3-
पिछले दिनों जो घट गया, वो घट गया, अब भूल जा.
वो वक्त जैसा भी था आखिर कट गया, अब भूल जा.
वो आँधियों का दौर था, पत्ता भी तब सिरमौर था.
सीने पे रख कर पांव, बादल छंट गया, अब भूल जा.
समता का कब वो युद्ध था, हर शख्स तेरे विरुद्ध था,
खाकर थपेड़े हाथ से जो तट गया, अब भूल जा.
सच से बड़ा हर झूठ था, लड़ता भी तो तू टूटता,
अच्छा हुआ जो रास्ते से हट गया, अब भूल जा.
इस हार का भी रंग है, जीवन का ये भी अंग है,
ये सच है कि थोड़ा-बहुत जीवट गया, अब भूल जा
-4-
बर्तन पुराने होते-होते जंग खा गए.
कांसे के,लोहा-पीतल के दिन भुला गए.
कमरे में, रसोई में, जब जगह नहीं मिली
बोरे में बंद होकर छत में समा गए.
बरसों पुरानी बजने की आदत नहीं गई
बच्चों को तंग आना था सो तंग आ गए.
आखिर तो वही होना था, एक दिन कबाड़ में,
वे गुमशुदा हुए तो कहानी बना गए.
आंखों के सामने ही बहुत कुछ बदल गया
अफसोस करते बूढ़े सब मर-मरा गए.
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