महुआ के जंगल
- रमेश तैलंग
जिए तोरी बरखा, जिए तोरा घाम,
महुआ के जंगल न कटें मोरे राम!
कुएं में डूबे जा कर कुल्हाड़ी,
छीने न कोई हमारी दिहाड़ी,
बापू का दोना और पातर का काम.
महुआ के जंगल न कटें मोरे राम!
जबसे सुना है कि सारी बजरिया
जंगल पे डाले है काली नजरिया
जीना ही अपना हुआ है हराम.
महुआ के जंगल न कटें मोरे राम!
हाकिम न जाने दिहाड़ी, मजूरी,
हाकिम तो जाने जी, बस जी-हजूरी
हाकिम को प्यारे हैं दमड़ी और चाम
महुआ के जंगल न कटें मोरे राम!
चित्रा सौजन्य: गूगल
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