Tuesday, October 30, 2012

महुआ के जंगल न कटें मोरे राम -लोक धुन पर रचा एक गीत



महुआ के जंगल 

- रमेश तैलंग 




जिए  तोरी बरखा, जिए तोरा घाम,
महुआ के जंगल न कटें मोरे राम!

कुएं में डूबे जा कर कुल्हाड़ी,
छीने न कोई हमारी  दिहाड़ी,
बापू का दोना और पातर का काम. 
महुआ के जंगल न कटें मोरे राम!

जबसे सुना है कि सारी बजरिया 
जंगल पे डाले है काली नजरिया
जीना ही अपना हुआ है हराम.
महुआ के जंगल न कटें मोरे राम!

हाकिम न  जाने दिहाड़ी, मजूरी,
हाकिम तो जाने जी, बस जी-हजूरी 
हाकिम को प्यारे हैं दमड़ी और चाम
महुआ के जंगल न कटें मोरे राम!



चित्रा सौजन्य: गूगल 

No comments:

Post a Comment