चित्र और कविताएँ - दोनों बच्चों को हमेशा से प्रिय रहे हैं. शायद यही कारण है कि बाल-साहित्य की परंपरा में अब तक जों भी बाल-कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं या हो रहें हैं उन्हें यथासंभव समुचित चित्रों से सुसज्जित किया जाता रहा है. इसलिए मोटे तौर पर देखें तो सभी बाल-कविताओं को बाल चित्र-कविताओं के श्रेणी में रखा जा सकता है. परन्तु वास्तव में ऐसा संभव है नहीं. बाल-चित्र कविताएँ बाल चित्र कथाओं के तरह ही एक विशिष्ट श्रेणी एवं सरंचना की मांग करती है. इसे ठीक से समझने के लिए हमें कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा.
जिस तरह अंग्रेजी बाल साहित्य में "पिक्चर बुक्स" की एक अलग श्रेणी है उसी तरह हमें अपनी भाषा हिंदी में भी चित्र पुस्तकों की एक अलग श्रेणी मान कर चलना होगा.
बच्चों के लिए जब हम चित्र पुस्तकों की बात करते हैं तो हम यह भी मान कर चलते हैं कि ऐसी पुस्तकों में चित्र का फैलाव "टेक्स्ट" की अपेक्षा कहीं अधिक होगा. फिर चाहे वह टेक्स्ट कथा का हो अथवा कविता का.
बाल चित्र कविताओं में चित्रों का फैलाव इसलिए भी आवश्यक है कि वे कविता में टेक्स्ट को समझने तथा उसे सम्पूरित करने के साथ-साथ बाल पाठकों की कल्पना को साकार करने में सहायक होते हैं.
यहाँ ध्यान में रखने वाली बात यह है कि बाल चित्र कविता में कविता का टेक्स्ट आकार में छोटा तथा ऐसे सरलतम शब्दों में लयबद्ध होना चाहिए जों बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार सहज रूप से बोधगम्य हो.
बाल चित्र कविताओं में प्राथमिकता चित्र की होती है और कविता दूसरे नंबर पर आती है. यदि चित्र छोटी उम्र के बच्चों के लिए बनाए जा रहे हैं तो उनकी सुंदरता और उनके रंग संयोजन की ओर चित्रकार का विशेष ध्यान होना चाहिए.
खेद है कि हिंदी के अधिकाँश प्रकाशक ऊपर कही गई बातों के प्रति सजग नहीं हैं और शायद यही कारण है कि हिंदी में अच्छी बाल चित्र कविताओं की बहुत ही कमी है. अगर कहीं चित्र खूबसूरत है तो वहाँ कविता का "टेक्स्ट" अटपटा है और जहाँ "टेक्स्ट" ठीक है वहाँ चित्र या तो बहुत छोटे हैं या फिर सामान्य श्रेणी के हैं. इसलिए व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर मैं अपनी बात कहूँ तो हिंदी में बाल चित्र कविताओं की स्थिति दयनीय ही है.
एक तरह से देखा जाए तो चित्र किसी भी कविता के सौंदर्य में वृद्धि कर सकते हैं परन्तु छोटी उम्र के बच्चों के लिए लिखी गईं बाल कविताओं के साथ उपयुक्त चित्रों का होना एक बड़ी जरूरत है जिसे तभी पूरा किया जा सकता है जब बाल कवि और चित्रकार दोनों को बच्चों के मनोविज्ञान का मूलभूत ज्ञान हो.
बाल कविता में लय और चित्र में सौंदर्य की कमी हो तो पूरी की पूरी बाल चित्र कविता फूहड़ता में बदल सकती है. बच्चों का अपना शब्द भंडार तो सीमित होता ही है, उनका दृश्य संसार भी सीमित होता है. इसलिए इन दोनों सीमाओं को नज़र मे रखते हुए बाल कविताओं के विषय तथा उनसे संबद्ध चित्रों का चुनाव किया जाना चाहिए. आधुनिक समय में जब बच्चे की समझ और मुद्रण की तकनीक दोनों ही में तेजी से परिवर्तन आ रहा है, तो बाल कवियों तथा चित्रकारों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है.
श्रुति परंपरा में बाल कविता के साथ चित्रों की अनुपस्थिति स्वाभाविक है परन्तु चित्रों की अनुपस्थिति में स्वयं बच्चे की कल्पना को पंख लग जाते हैं. उदाहरण के लिए कोई बाल कविता किसी फूल या जानवर के बारे में है तो बच्चा चित्र की अनुपस्थिति में उस फूल या जानवर को अपनी कल्पना से क्या आकृति देगा या उसमे क्या रंग भरेगा यह हमारी-आपकी कल्पना से बाहर है. वह गाय को ऊँट या गुलाब को गेंदे के आकृति और रंग दे सकता है. इस प्रक्रिया में उसकी अपनी स्मृति और उसके सीमित दृश्य जगत का अनुभव ही काम करेगा. परन्तु जहाँ चित्र उपस्थित हैं वहां उसकी कल्पना को विराम लग सकता है. ऐसी स्थिति में बाल कविता के विषय से परिचित होने के लिए चित्र ही उसके आलंबन का काम करेंगे.
बहरहाल इधर के वर्षों में कम उम्र के बच्चों के लिए जों बाल कविता संग्रह या शिशु गीत संग्रह प्रकाशित हुए हैं उनमे से कुछ चुनी हुई बाल कविताओं का मैं यहाँ उल्लेख करना चाहूंगा जों हमारी कसौटी पर कमोवेश सही उतरती हैं. इनमे डॉ. शेरजंग गर्ग के शिशुगीतों का एक संग्रह है -"गीतों के रसगुल्ले", चित्रांकन ओम प्रकाश रावत, प्रकाशक: मेधा बुक्स-दिल्ली-३२. इस संग्रह में बहुत से ऐसे शिशुगीत हैं जों बच्चों की उम्दा चित्र कविताओं के श्रेणी में फिट होते हैं.
डॉ.शेरजंग गर्ग हिंदी शिशुगीतों के पुरोधा रचनाकारों में से हैं और उन्हें बच्चों के मनोविज्ञान तथा शिशुगीतों के संरचना का दीर्घनुभव है. उनके शिशुगीतों में सजता और विविधता दोनों का सधा हुआ संयोजन देखने को मिलता है. कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं:
हाथी की है बात महान/हाथी के हैं दांत महान/
भीतर-भीतर खाने के हैं/बाहर सिर्फ दिखाने के हैं/
चश्मा लगा के बुढिया/लगती जवान बुढिया/
कुछ बडबडा रही है/ किसको पढ़ा रही है?
मिस्टर जोकर, जागे सोकर/
ठोकर लगी/ हँसे हो-हो कर/
सीधा-सादा सधा-सधा है/
इसी जीव का नाम गधा है/
हालांकि इस संग्रह में दो-रंगे चित्रों की जगह चतुरंगे चित्र होते तो इनकी श्रेष्ठता और विश्वसनीयता अधिक बढ़ जाती परन्तु लागत की दृष्टि से प्रकाशकों की अपनी सीमाएं होती हैं, इसलिए इस मुद्दे पर ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता.
चतुरंगे चित्रों वाली बाल कविताओं की बात की जाये तो सी.बी.टी. द्वारा प्रकाशित चार बाल कविता संग्रहक्रमशः : आओ गीत गायें-लेखक: जे. सी. मेहता, चित्रांकन: सुरेन्द्र सुमन/ मूंछे ताने पहुंचे थाने - लेखक: अनेक, चित्रांकन: अजंता गुहाठाकुरता /मेरे शिशुगीत- लेखिका: प्रीत्वंती महरोत्रा, चित्रांकन: अमित कुमर तथा चंदामामा का पाजामा-लेखक: अनेक:चित्रांकन: अजंता गुहाठाकुरता का उल्लेख किया जा सकता है. इन सभी संग्रहों के चित्र खूबसूरत परन्तु कवितायेँ अधिकांशतः निम्न स्टार की हैं, जिनमे लयबद्धता की कमी तो है ही, विषयों के चयन भी ठीक नहीं है.
जैसा कि मैंने पूर्व में कहा, बच्चों की चित्र कविताओं में कविता छोटी और चित्र बड़े होने चाहिए इसलिए मैं यहाँ जानबूझ कर बड़ी बाल कविताओं की चर्चा नहीं कर रहा हूँ, हालांकि उनमे से कई ऐसी हैं जों हिंदी की आधुनिक बाल कविता के क्षेत्र में नए प्रतिमान स्थापित करती हैं. परन्तु बच्चों की चित्र-कविताओं में -टेक्स्ट का दो, चार, छः, या अधिकतम आठ पंक्तियों तक सीमित होना ही उचित है.
अंग्रेजी में प्रकाशित चिल्ड्रेन पिक्चर पोएट्री की ऐसे कई श्रेष्ठ पुस्तकें चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली के पुस्तकालय में उपलब्ध हैं जिन्हें बच्चों की अच्छी चित्र कविताओं के लिए याद रखा जा सकता है. संदर्भवश एक-दो उद्धरण मैं यहाँ देना चाहूँगा:
"Peeping shyly in the water
In the swetest flower of all
Rose has lovely velvet petals
Which we gather when they fall
(Flower Maidens: printed by Birn Bros Ltd. England)
"In the woodlands you will find her
Gaily dressed in yellow and green
Neath the trees sits little prim rose
Making poses fit for a queen"
(Flower Maidens: printed by Birn Bros Ltd. England)
With her graceful bell like flowers
And her stems so straight and tall
Lily looked into her mirror
She thinks she is the best of all"
इन कविता उद्धरणों की एक विशेषता यह है कि इन सभी में चित्रों को वर्णित ( narrate) किया गया है, जब कि सामान्यतः होता यह है कि कविताओं पर चित्र बनाए जाते हैं. इसीलिये इन कविताओं के साथ दिए गए चित्र बोलते हुए चित्र नज़र आते हैं.
हिंदी में उम्दा शिशुगीतों की कमी नहीं है और उनके धुरंधर रचनाकारों में निरंकार देव सेवक, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, कन्हैया लाल मत्त, विष्णुकांत पाण्डेय, शांति अग्रवाल, डॉ. श्री प्रसाद, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, बालस्वरूप राही, डॉ. राष्ट्रबंधु, योगेन्द्र कुमार लल्ला, दामोदर अग्रवाल से लेकर सूर्य कुमाँ र पाण्डेय, योगेन्द्र दत्त शर्मा, डॉ. मोहम्मद फहीम तक आधुनिक पीढ़ी के अनेक कवि हैं.परन्तु उनकी रचनाओं को बड़े रंगीन चित्रों के अभाव में सिर्फ टेक्स्ट के आधार पर आधे-अधूरे मन से बाल चित्र कविताओं की श्रेणी में रखना उचित नहीं लगता. अच्छा होगा कि इन रचनाकारों के श्रेष्ठ बालगीतों को उम्दा चित्रांकन के साथ बाल चित्र पुस्तकों के रूप में पुनर्प्रकाशित करने की जिम्मेदारी सुधी और सक्षम प्रकाशक उठाएं. उनका यह कदम निश्चित रूप से बच्चों की चित्र कविताओं के साहित्य को समृद्ध करेगा.
संदर्भवश यहाँ में एक बात और कहना चाहूंगा. अमर चित्र कथा वालों ने बाल चित्र कथा की एक सुद्रढ़ परंपरा हिंदी तथा अन्य भाषाओं में स्थापित की है. काश श्री अनंत पै का एक क्लोन और हमारे देश में जन्मा होता तो वह अमर चित्र कविताओं की भी एक श्रंखला आरम्भ करता. परन्तु क्योंकि ऐसा नहीं हुआ इसलिए क्या ही अच्छा हो यदि अमर चित्र कथा के प्रकाशक ही (दुर्योग से अब श्री अनंत पै हमारे बीच नहीं हैं) अमर चित्र कविता की श्रंखला का शुभारंभ करें. प्रयोग की दृष्टि से यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा. हिंदी की अच्छी बाल कविताओं में बहुत से ऐसे कथा गीत हैं (इस विषय पर में आगे इस ब्लॉग पर लिखूंगा) जों एक पूरी अमर चित्र कविता का आकार ग्रहण कर सकते हैं. जहाँ ऐसा संभव नहीं है वहाँ स्वतंत्र बाल कविताओं के साथ पूरे पृष्ठ के रंगीन चित्र संयुक्त किए जा सकते हैं.
बाल चित्र कविताओं में प्रयोग की दृष्टि से पोस्टरों को भी शामिल किया जा सकता है या फिर बच्चों की रूचि, समझ तथा उनके वातावरण के अनुसार अच्छे चित्रांकन, छायांकन और पारदर्र्शियों का भी छोटी कविताओं के साथ उपयोग किया जा सकता है. इसमें संदेह नहीं कि यह कार्य एक सुलझी हुई दृष्टि, श्रम और संसाधन की मांग करता है परन्तु कहीं न कहीं, किसी न किसी को पहल तो
करनी ही होगी.
बच्चों की चित्र कविताएं पहली दृष्टि में ही आकर्षक होंगी तो वे बच्चों के बीच निश्चित रूप से अपना स्थान बनाएंगी. हमारे यहाँ एक बड़ी समस्या यह है बाल साहित्य पर जितनी भी छोटी-बड़ी संगोष्ठियां आयोजित होती हैं उनमे बाल साहित्यकारों की तो भागीदारी होती है पर चित्रकारों/इलस्ट्रेटरों की समुचित भागीदारी नहीं होटी . इसके पीछे क्या कारण हैं, इसके विस्तार में मैं नहीं जाना चाहूंगा, परन्तु इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि चित्र साहित्य में चित्रकार की भूमिका लेखक की भूमिका से कहीं ज्यादा अहम होती है. वह अमूर्त्त को समूर्त करता है. वह शब्द को दृश्य में बदलता है. इसलिए उसका सामंजस्य लेखक के साथ अधिकतम होना चाहिए. कभी-कभी तो ऐसा देखा गया है कि लेखक चित्रकार के बीच में प्रकाशक एक पुल की तरह काम न कर दीवार की तरह खड़ा हो जाता है. ऐसी स्थिति में चित्रकार के सामने लेखक की रचना तो होती है परन्तु लेखक के सामने चित्रकार की दृश्य कल्पना का कहीं अत-पता नहीं होता. यदि उन दोनों के बीच सही संवाद स्थापित रहे तो रचना अपने द्विआयामी असर के साथ श्रेष्ठतम रूप में उभरकर सामने आती है. बच्चों की चित्र कविताओं के क्षेत्र में ऐसा सामंजस्य होना अभी अपेक्षित है.
बहुत से संस्थानों एवं प्रकाशन गृहों ने ऐसे भी प्रयोग किए हैं जिनमे कुछ चुने हुए कवियों के बाल कविताओं पर स्वयं बच्चों को चित्र बनाने के लिए आमंत्रित किया गया है तथा उन्चित्र कविताओं की प्रदर्शनी भी लगाईं गई है. मेरी दृष्टि में ऐसी चित्र कविताओं का महत्त्व कम नहीं हैं क्योंकि ऐसे चित्रों में बच्चों का अपना योगदान अपने शिखर पर होता है.
सारांश रूप में हम यह कह सकते हैं बच्चों की चित्र कविताओं का मनोविज्ञान बच्चों के मनोविज्ञान से अलग नहीं है. इसलिए बच्चों की अपनी पसंद, अपनी कल्पना, अपनी बौद्धिक-क्षमता जब तक किसी बाल कविता अथवा चित्र माँ प्रदर्शित नहीं होती तब तक कोई भी बाल चित्र कविता उनकी कसौटी पर खरी नहीं उतर सकती. हिंदी जगत में ऐसी बाल चित्र कविताओं का सृजन, प्रकाशन और
मूल्यांकन अभी अपनी शैशवावस्था में है.
-रमेश तैलंग
(त्रिसाम्या से साभार)
बहुत ही महत्वपूर्ण आलेख.
ReplyDeleteक्या करें ?-डा. सुरेन्द्र विक्रम