युद्ध
कपूर की गंध की तरह
उड़ जाने वाली
महीने भर की तनख्वाह
पत्नी को पकडाते ही
आप हो जाते हैं मुक्त
और पत्नी के लिए
शुरू होता है
एक न जीता जाने वाला
मानसिक युद्ध.
उँगलियों पर लगाती है वह हिसाब
कितने दिन दूध नहीं दिया दूध वाले ने
कितने दिन अखबार नहीं आया महीने में
कितना बचाना है हारी-बीमारी को
कहाँ-कहाँ मारनी हैं मन की इच्छाएं
कहाँ-कहाँ देने हैं झूठे दिलासे
कहाँ-कहाँ खोलनी है
बंधी हुई मुठ्ठी
कहाँ कहाँ पीनी है
अपमान की घुट्टी.
निरापद सी जगह
दिन भर की मेहनत-मशक्कत
के बाद
थोड़ी सी फुर्सत निकाल
वह बैठ जाती है
बीस साल पुरानीं अलमारी खोल कर
सधे हुए हाथों से कई-कई बार
सँभालती है फिर
वही गिनी-चुनी साड़ियां,
जतन से छुपा कर रखे गए
दो तीन प्रेम पत्र,
चोरी गए आभूषणों का
खाली पड़ा मखमली डिब्बा,
कुल देवता की पूजी हुई
चाँदी की टिकुली,
विवाह के समय खींचा गया
इकलौता श्वेत-श्याम चित्र,
मुडी-तुड़ी कोने में पड़ी
बीमार डिग्री.
अन्पूरे सपनों को छूने के लिए
एक निरापद सी जगह
शायद यहीं मिलती है उसे
कभी-कभी.
चीजों के बीच में
भरे-पूरे घर में
हर चीज अपनी जगह पर
उपस्थित थी
टी वी की जगह टी वी
सोफा की जगह सोफा
पर्दों की जगह परदे
चिंताओं की जगह चिंताएं
दुखों की जगह दुःख
इन ढेर सारी
चीजों के बीच
पता नहीं
कहाँ थे गुम
हम---और---तुम.
स्त्रियों को पता होता है
स्त्रियों को पता होता है
अखबार पढ़े बिना
आटे-दाल का भाव
आखिर घर चलाती हैं वे.
स्त्रियों को पता होता है
पुरुषों की जेब में
कहाँ-कहाँ धन है
और कहाँ-कहाँ ऋण.
स्त्रियों को पता होता है
कितना कुछ बोला जा सकता है
चुप्पी के माध्यम से.
स्त्रियां
अब भी
एक अनवरत खोज हैं
पुरुषों के लिए.
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