हिंदी भाषा के वन्दनीय कीर्ति-स्तंभों में से एक पंडित श्रीधर पाठक की कबित्त छंद में एक अनोखी कविता मिली है. यह कविता राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर के पूर्व निर्देशक और पंडित श्रीधर पाठक के पुत्र श्री पद्मधर पाठक द्वारा तीन खण्डों में सम्पादित पुस्तक "श्रीधर पाठक ग्रंथावली" में संग्रहीत है और यह श्री बालकृषण भट्ट के सम्पादन में निकल रही पत्रिका - हिंदी प्रदीप में प्रकाशित हुई थी..
अंग्रेजी वर्णमाला से शुरू होती इसकी सारी पंक्तियाँ अंत में आकर एक मुकम्मल कविता बन जाती है जो गुलामी में जकड़े भारतीय युवावर्ग को अपनी ताकत पहचानने और गुलामी के विरुद्ध युद्ध करने का आह्वान करती है... नै पीढ़ी के लिए यह कविता सामान्यतः अलभ्य ही है . यहाँ आप अपने स्वभावानुसार इस कविता की मीन-मेख निकालने की बजाय इसका आत्मिक आनंद लीजिये:
A रे
B र
C रे ना परहु, रन-खे त माहिं
D ल तो निहारो निज, दिग्गज लखात है
E स कोण मनाई
F G हति विचारी देस, तुरत विदारी,
H मू कितेक बात है
I,J मलेच्छ सेन,
K ती हैं विचारी भला, लरिये
L राई भाई प्रजा अकुलात है
M द-साने सूर, नाम पे न डारौ धूर
N युद्ध औसर पी ढील न सुहात है
O खाऊ है समैया, नाहीं,
P र को सुनैया कोंऊ धीरज-धरेया, भैया एक ना दिखात हैं.
सर,
Q लार देस में फ़िरायौ कलि-राज आज
R त अवस्था झूठ भारत की बात है
S ढील आलस काउ
T को लगायौ सर
U थन के यूथ, आर्य
V ज के नसात हैं
W न पास एक टेक्स
X इज अनेक, पोतहू स
Y देत-देत
Z रात हैं.
श्री प्रयाग : जनवरी, १८८५
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हिंदी पाठ
एरे वीरे सीरे ना परहु रन-खेत माहिं
डील तो निहारो निज दिग्गज लखात है.
ईस कौं मनाईए, फजीहति बिचारी देस
तुरत विदारिए चमू कितेक बात है.
आई जे मलेच्छ सेन केती हैं विचारी भला
लरिये लराई भाई प्रजा अकुलात है
ऐ मद-साने सूर, नाम पे न डारो धूर
एन युद्ध-औसर पै ढील न सुहात है
ओखौ है समैया नाहिं पीर की सुनैया कोंऊ
धीरज-धरेया भैया एक न दिखात है
सरक्युलर देस में फिरायो कलि राज आज
आरत अवस्था झूठ, भारत की बात है
ऐसे ढील आलस कौ टीकौ लगायो सर
यूथान के यूथ आर्य-वीजके नसात है
डबलउ न पास एक टेक्स एक्सइज अनेक
पोतहू सवाई देत-देत जे डरात है.
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