आज बस इतना ही........12 मई, 2013
(foto credit : google)
कभी अब्र बन के बरस गए, कभी धूप बन के बिखर गए.
वो अजीब किस्म के लोग थे जो मिले तो दिल में उतर गए.
उन्हें फुर्सतों की कमी न थी, उन्हें चाह कोई बड़ी न थी,
रखा हाथ सर पे तो यूं लगा जैसे बोझ सारे उतर गए.
वो फ़कीर हो के अमीर थे, वो ग़मों में सबके शरीक थे,
वहीं चार महफ़िलें
जोड़ लीं,जहां
चार पल को ठहर गए.
भले कितनी थी दुश्वारियां,नहीं तोड़ीं यारों से यारियां,
वहीं बन गए नए रास्ते, वो जिधर-जिधर से गुजर गए.
वो नज़र से दूर जो जा बसे, तो हमारी यादों में आ बसे,
वो अभी थे आंखों के सामने, वो अभी-अभी लो, किधर गए?
- रमेश तैलंग
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