कुछ ख्वाब थे आँखों में, अधूरे ही रह गए.
सुर न मिला तो मौन तमूरे ही रह गए.
बाजीगरी का फन न जिन्हें रास आ सका,
वे ज़िन्दगी में सिर्फ
जमूरे ही रह गए.
सिर पर उठाया मैल जिन्होंने समाज का,
ताउम्र वे समाज में
घूरे ही रह गए.
दुःख-दर्द पे पहले तो किताबें लिखी गईं,
फिर बाद में किताबों के चूरे ही रह गए.
अधनंगों की किस्मत में और कुछ नहीं बचा,
बस काटने को कान-खजूरे ही रह गए.
चित्र सौजन्य: गूगल सर्च
बाजीगरी का फन न जिन्हें रास आ सका,
ReplyDeleteवे ज़िन्दगी में सिर्फ जमूरे ही रह गए.
सिर पर उठाया मैल जिन्होंने समाज का,
ताउम्र वे समाज में घूरे ही रह गए.
बहुत बढ़िया शेर