Wednesday, October 10, 2012

कुछ ख्वाब थे आंखों में








कुछ ख्वाब थे आँखों में, अधूरे ही रह गए.
सुर न मिला तो मौन तमूरे ही रह गए.
बाजीगरी का फन न जिन्हें रास आ सका, 
वे  ज़िन्दगी में सिर्फ जमूरे ही रह गए.
सिर पर उठाया मैल जिन्होंने समाज का,
ताउम्र वे समाज में  घूरे ही रह गए.
दुःख-दर्द पे पहले तो किताबें लिखी गईं,
फिर बाद में किताबों के चूरे ही रह गए.
अधनंगों की किस्मत में और कुछ नहीं बचा, 
बस काटने को कान-खजूरे ही रह गए.


चित्र सौजन्य: गूगल सर्च 

1 comment:

  1. बाजीगरी का फन न जिन्हें रास आ सका,
    वे ज़िन्दगी में सिर्फ जमूरे ही रह गए.
    सिर पर उठाया मैल जिन्होंने समाज का,
    ताउम्र वे समाज में घूरे ही रह गए.

    बहुत बढ़िया शेर

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