Sunday, July 15, 2012

प्रख्यात हिंदी कवि, कला-चिंतक हेमंत शेष की कविताएँ





हेमंत शेष 




समकालीन हिंदी कविता को  नई  धार देने वाले कुछ विरल कवियों में हेमंत शेष ने अपनी अलग ही पहचान बनाई है. वे बहुपठित एवं बहुचर्चित कवि  और कला-चिंतक हैं.  यहां बहुत ही सम्मान से उनकी  तीन कविताएँ  प्रस्तुत हैं . आशा है इस ब्लॉग के पाठकों को ये पसंद आयेंगीं:


निमिष के लिए एक कविता 


बचपन में बच्चा
एक नसीहत है.
प्रौढ़ चेहरों में बदलते हुए
पत्थरों के लिए
क्षमा में सब कुछ
भूलना उसकी सम्पत्ति है
जिस आदत के लिए
तरस जाना हमारी नियति
एक बच्चे को याद रखने के पाठ सौंपते हुए
हम क्रूरता और बेवकूफी
दोनों को साधते हैं
उसकी अर्थ भरी मुस्कान के विवेक से
डरते हुए
हमें किसी दिन
बंद कर देना चाहिए यों बिना परिश्रम
बड़े होना
और कहलाना.






अभाव-अभियोग


एक पत्नी
अपने पति के
सपनों में चिल्लाती है.
उसकी चीख से त्रस्त
चुपचाप वह निकल जाता है
झोला लिए.

अभाव उसे खा जाते हैं, बाजार ही में
कुतरा  हुआ शरीर जब आता है लौट कर
टूटता है सपना.
वह झल्लाता है और देखता है
पत्नी सोयी हुई है उसी तरह.

कई बरसों से
घर और सपनों पर टंगा है
एक झोला
जिसमें  बाजार
एक डकार की सूरत में भरा है.
और जो
पत्नी की चीख की वजह है.


चीटियाँ 


चीटियाँ मृत्यु तक सर्वशक्तिमान हैं
भूमि पर स्थित हर चीज तक उनकी पहुंच है.

वे जानती हैं
मनुष्य की क्षुद्र और नश्वर दुनिया के बहुत से तथ्य
अपनी सूक्ष्म नाकों से भी वे
सूंघ सकती हैं चीनी और चावल के दानों की उपस्थिति
हर बार सुराग लग ही जाता है उन्हें
मेज के नीचे फैले अन्न-कणों का
हर बार मालूम होता है वहां से चीटियों को
अपने घर का सबसे छोटा रास्ता
वे व्यस्त्तापूर्वक उस पर चल पड़ती हैं
और कभी पलटकर नहीं देखतीं.

न वे प्रतीक्षा करती हैं
न पूछताछ
वे कभी नहीं देखतीं अपना भविष्यफल
पत्र-पत्रिकाओं में
सफर कर निकलने के लिए उन्हें नहीं
जमाना पड़ता हजामत का सामान
उन्हें अपने साहसिक अभियानों की खबर अखबारों में
छपवाने में भी कोई दिलचस्पी नहीं होती
चीटियों  के जीवन पर बनायी जाती हैं फ़िल्में
दिए जाते हैं विज्ञानसम्मत भाषण
उन पर लिखे जाते हैं दिलचस्प नाटक
पर वे कभी उन्हें देखने नहीं आतीं
उन्हें पता होती है यह बात
जून के बाद आता है जुलाई
तब उन्हें सांस लेने तक की फुर्सत नहीं मिलती
बरसात की ऋतु से पहले ही अपने बच्चों के लिए
अटा देती हैं वे बिलों को राशन से
अपने से कई गुना मजबूत और बड़ी चीजों को
अत्यधिक छोटे मुन्हों से
गंतव्य तक खींच कर ले आने की कला में
निष्णात होने के बावजूद
वे गर्व में भर कर फूल नहीं जाती
और पुरानी शक्लों में ही बनी रहती हैं.

हवाई जहाज़ों की खिड़कियों से
बेशक चीटियाँ दिखलाई नहीं देतीं
पर उस वक्त भी
वे पूरी पृथ्वी पर फ़ैली होती हैं
नन्हें अन्न कणों की तरह
और
सबसे बड़ी बात तो यह कि चीटियों
पूरी प्रगतिशीलता और काव्यात्मकता के बावजूद
कभी कवि होने की गलतफहमी नहीं होती.


(आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी से साभार)

12 comments:

  1. aap ke sneh kee phunhaaron mein phir bhigone ka shukriya!

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  2. हेमंत शेष की कविता को हमेशा ही उत्‍सुकता से पढ़ता हूं और मुझे अकसर ही उनकी कविता अपनी कुल भंगिमा में काफी दिलचस्‍प लगती रही है। इन कविताओं को पढ़कर एक सर्जनात्‍मक आनंद से गुजरना हुआ।

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  3. हेमंत शेष की कविता ने सदैव अपना एक अलग गंतव्‍य लक्ष्‍य में रखा है। चीटियॉं पढ़कर आम आदमी से मिलते जुलते उनके चरित्र का ख्‍याल हो आया। जगूड़ी ने आम आदमी को लेकर एक कविता लिखी है: एक शब्‍द तिनका। मामूली आदमी आज क्‍या हैसियत है, यह कल्‍पना से बाहर
    नही है। चीटियों के प्रतीक के बहाने कवि ने जो कुछ कहा है, उसे एक शायर के शब्‍दों में कहें तो यही कि :
    चीटियॉं आई थीं जो हक़ मॉंगने उनको
    दे के बहलाया गया कुल्‍फी मलाई है।
    कविताऍं अच्‍छी लगीं। भाव अभियोग भी। बधाई।

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  4. धन्यवाद कुमार अम्बुज जी तथा ओम निश्छल जी, आपने हेमंत शेष की कविताओं पर अपनी प्रबुद्ध प्रतिक्रिया दी

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  5. "चीटियों" नें देर तक बांधे रखा ..
    आभार

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    1. हेमंत आपको बधाई! कविताओं की यह यात्रा चलती रहे.
      चींटियाँ कविता बहुत पसंद आई.
      शुभकामनाओं के साथ

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  6. आह आभार पर जी गायब क्यों

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  7. "सबसे बड़ी बात तो यह कि चीटियों
    पूरी प्रगतिशीलता और काव्यात्मकता के बावजूद
    कभी कवि होने की गलतफहमी नहीं होती."
    'चीटियाँ ' कविता की यह पंक्तियाँ बहुत कुछ कह जाती हैं ।

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  8. हेमंत जी की कविताएँ व्यापक दृष्‍टि और संवेदनाएँ लिए हुए हैं। इन पंक्‍तियों ने बेहद प्रभावित किया -
    "एक बच्चे को याद रखने के पाठ सौंपते हुए
    हम क्रूरता और बेवकूफी
    दोनों को साधते हैं
    उसकी अर्थ भरी मुस्कान के विवेक से
    डरते हुए
    हमें किसी दिन
    बंद कर देना चाहिए यों बिना परिश्रम
    बड़े होना
    और कहलाना."

    चींटियों ने भी अत्यंत प्रभावित किया । कितना सरल और उद्दम भरा जीवन है इनका !
    "और
    सबसे बड़ी बात तो यह कि चीटियों
    पूरी प्रगतिशीलता और काव्यात्मकता के बावजूद "
    बेहद सुंदर !
    कभी कवि होने की गलतफहमी नहीं होती.

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  9. डरते हुए
    हमें किसी दिन
    बंद कर देना चाहिए यों बिना परिश्रम
    बड़े होना
    और कहलाना ..................... कितना उचित है ... हर रचना मन-मोहक ..बधाई ...हेमंत शेष जी को और आभार आपका...

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  10. डरते हुए
    हमें किसी दिन
    बंद कर देना चाहिए यों बिना परिश्रम
    बड़े होना
    और कहलाना ..................... कितना उचित है ... हर रचना मन-मोहक ..बधाई ...हेमंत शेष जी को और आभार आपका...

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  11. 'चीटियाँ मृत्यु तक सर्वशक्तिमान हैं
    भूमि पर स्थित हर चीज तक उनकी पहुंच है'.......एक सम्वेदनशील रचना !आभार सर !
    ये चिट्टियाँ भी ना कितनी कम रौशनी में बहुत खुश खुश जी लेती है जीवन, है ना !!

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