जी भर के अकेले में खूब लिखते रहो जी
ऐसा भी क्या मगर कभी तो मिलते रहो जी
अरसा हुआ न आपकी सूरत दिखी हमें
लहरों की तरह ही कभी तो हिलते रहो जी
हम ही तो हैं जो आपके लिखे को पढेंगे
डिस्टर्ब भी करेंगे, भले चिढते रहो जी
हर दोस्ती का है उसूल खुशनुमा रहना
सूरजमुखी की तरह ज़रा खिलते रहो जी
पूछो कभी तो खैर-ख्वाह आप हमारी
कागज़, कलम पे ही न रोज पिलते रहो जी.
-रमेश तैलंग
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