कहने के लिए एक अदद जुबान चाहिए.
सुनने के लिए फिर दो अदद कान चाहिए.
ये गुफ्तगू करना कोई आसान नहीं है,
इसके लिए भी थोड़ा इत्मीनान चाहिए.
दो जून की रोटी नहीं ईमान से मिलती
धंधे के लिए उनको बेईमान चाहिए.
जनता का तो पता नहीं क्या चाहिए उसे
नेताओं को कमजोर संविधान चाहिए
तकलीफ हमारी जो हमारी तरह समझे,
भगवानों की दुनिया में एक इंसान चाहिए.
-रमेश तैलंग
२४/१०/२०११
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