Thursday, August 11, 2011

श्री कन्हैया लाल मत्त की दो बाल कविताएं

18 अगस्‍त, 1911 को टूंडला से चार किलोमीटर दूर ग्राम जारखी में जन्मे श्री कन्हैया लाल मत्त जी की गणना शिखरस्थ बाल कवियों में है. मत्त जी की प्रमुख बालकविता पुस्तकों के नाम हैं - बोल री मछली कित्‍ता पानी, आटे बोटे सैर सपाटे, जम रंग का मेला, सैर करें बाजार की, जंगल में मंगल, खेल तमाशे आदि। मत्त जी हिंदी में लोरियां लिखने वाले पहले कवि माने जाते हैं। ‘लोरियाँ और बालगीत’ ‘रजत-पालना’ और ‘स्‍वर्ग-हिंडोला’ उनकी लोरियों की प्रमुख पुस्‍तकें हैं।

यह वर्ष मत्त जी का जन्मशताब्दी वर्ष है. इस अवसर पर हम उनकी दो बाल कविताएं सम्मान सहित यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं:

डंडा-डोली पालकी

डंडा डोली पालकी
जय कन्हैया लाल की!

आगे-बागे टूल के,
झांझ-मंजीरे कूल के
शंख समंदर-कूल के
ढपली धुर बंगाल की!
जय कन्हैया लाल की.

कमर करधनी कांस की
वंशी सूखे बांस की
जिसमें जगह न सांस की,
झांकी बड़े कमाल की
जय कन्हैयालाल की.

माखन-मिस्री घोलकर
मन-भर पक्का तोलकर
खाते हैं दिल खोलकर
रबड़ी पूरे थाल की.
जय कन्हैयालाल की
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तोतली बुढ़िया

एक तोतली बुढिया माई,
घुमा रही थी तकली
उसके बड़े पोपले मुंह में
दांत लगे थे नकली.

'तोता' जब कहना होता था,
कह जाती थी 'टोटा',
'गोता' को 'गोटा' हो जाता,
'सोता' बनता 'टोटा,.

भोली-भाली शक्ल बनाकर,
पहुँचे टुनमुन भाई,
काट रही थी जहां बैठकर-
तकली बुढिया माई.

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