Wednesday, May 18, 2011

नानी की चिठ्ठियाँ -2

मेरे प्यारे चम्पू, पप्पू, टीटू, नीटू, गोलू, भोलू, किट्टी, बिट्टी
चिंकी, पिंकी, लीला, शीला, लवली, बबली!
देखा, पहली ही चिट्ठी ने जादू का असर कर दिया न तुम सब पर.
चम्पू का तो फोन भी आ गया, बोल रहा था - "आपकी चिट्ठी पा कर मज़ा आ गया नानी! पर एक शिकायत हिया जब मैंने पूछा कि क्या तो बोला - अब मैं बड़ा हो गया हूँ नानी पर आप हैं कि अभी भी चम्पू...चम्पू... लिखती रहती हैं. अरे चम्पक नाम है मेरा, वाही लिखा करो न. पता है, मेरे क्लास के लड़के और यहाँ तक कि मेरे इंग्लिश के सर सब मुझे चैम्प कहते हैं. अपनी टीम का चैम्पियन जो हूँ.
सुन कर मुझे हंसी आ गई. मैं बोली...अरे बेटा, ये नानी न तो तुम्हारी क्लास मेट है और न ही तुम्हारी क्लास टीचर इसलिए उनके लिए भले ही तुम चैम्प बन जाओ पर मेरे लिए तो वाही बने रहोगे चम्पू के चम्पू . वो क्या हैं न बेटा, ऐसे नाम होम मेड रेसिपी कि तरह होते हैं जो दर असल बनाये नहीं जाते, आप ही बन जाते हिना जैसे दाल-भात के लिए दल्लू-भत्तु. अब बच्चों से दल्लू-भत्तु कहने में जितना मज़ा आता है उतना मज़ा दाल-भात कहने में थोड़े ही आता है.
ज़रा अपनी भी तो सोचो तुम लोग अंग्रेजी में माँ को मम्मी, मम्मा, पापा को पैप और डैडी को डेड पता नहीं क्या क्या अटरम-शटरम बोलते रहते हो. क्या तुमने कभी सोच है कि डेड का मतलब क्या होता है. पर तुम्हारे पिता ने तो तुमसे कभी नहीं कहा कि तुम उन्हें डेड क्यों कहते हो?
दरअसल कोई भी भाषा या बोली स्थिर नहीं होती, देश-काल के साथ उसमे बदलाव आते रहते हैं. पता नहीं तुमने सुना है कि नहीं, एक शब्द है -ज़िह्वालाघव. थोडा कठिन है पर बोल सकते हो. इसका मोटा मतलब कि हमारी जबान को जो भी सहज लगे.
संस्कृत के बड़े-बड़े कठिन और तत्सम शब्द कैसे देशज रूप में आ कर हमारी हिंदी में घुल-मिल गया इसकी बड़ी ही रोचक कहानी है. एक तरह से यह पीछे की यात्रा है. सूत्र कहीं से भी पकड़ो और पीछे चलते-चलते उस शब्द के मूल या उद्गम स्थल तक पहुँच जाओ.
नानी शब्द ने मातामही से चल कर कितने पडाव पार किये और कितनी अन्य भाषाओँ तथा बोलियों से दोस्ती गांठी इसकी कहानी कभी फुर्सत में सुनाऊंगी. अभी तो बस मेरे लिटिल चैम्प , अपनी प्यारी नानी के लिए चम्पू ही बने रहो.
ये लो, अब तुम कहोगे कि ये पूरी चिट्ठी तो चम्पू के गोरख धंधे में ही फंस कर रह गई, बाकी किसी कि तो खबर ही नहीं ली नानी ने पर मेरे नन्हे-मुन्नों और मुनियों, चम्पू का तो बहाना था. बात तो मैं तुम सभी से कर रही थी.
इधर एक अजीब सी खबर पढ़ी है. अपने देश के एक सीमावर्ती राज्य में एक चरमपंथी संगठन १०० रुपयों के बदले सार्वजनिक स्थलों पर बम रख्बाने के लिया बच्चों का इस्तेमाल कर रहा है. या तो बच्चों के साथ भयावह दुष्कर्म है और देश के लिए घातक भी.
अगली चिट्ठी में इस बारे में तुमसे बात करूंगी.
तब तक के लिए ढेर सारे आशीर्वाद.

तुम्हारी अपनी नानी....

1 comment:

  1. भाई साहब , नमस्कार .
    कृपया अपना चर्चित बाल गीत चपाती यहाँ देखिये --

    http://baal-mandir.blogspot.com/

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