शीश-पांव ढक जाएं,
बस इतना काफ़ी है;
और बड़ी चादर का
क्या होगा बावरे?
हाड़-तोड़ मेहनत के
बाद मिलें दो रोटी;
जीवन सन्तोष-मय,
उम्र भले हो छोटी;
कंठ तॄषित तर जाएं,
बस इतना काफ़ी है,
वैभव ले सागर का
क्या होगा बावरे?
इच्छाओं का यूं तो
कोई भी पार नहीं;
नैया चलती रहे,
सिर पर हो भार नहीं;
मुक्त-भाव मर जाएं,
बस इतना काफ़ी है,
बंधन दुनिया भर का,
क्या होगा बावरे?
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सपने उदास थे
वृक्ष, नदी, फ़ूल, पात
सभी आस-पास थे,
तू कैसे देखता,
तेरे नयनों में तो सपने उदास थे।
सूरज आया-गया, पर तूने
वातायन न खोले;
गूंजा संगीत प्रकृति का, तेरे
अधर रहे अनबोले;
उत्सवमय दिवस-रात
सभी आस-पास थे
तू कैसे देखता,
तेरी सांसों में तो संचित संत्रास थे
जीवन के हर पल पर - दीनता,
मलिनता रही हावी;
वर्तमान खा गई, अतीत की
चिंता, होनी भावी;
खिले-खिले पारिजात
सभी आस-पास थे
तू कैसे देखता
तेरी मुट्ठी में तो दंशित मधुमास थे
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