पुस्तक समीक्षा
शाने तारीख
पंद्रहवीं शताब्दी के
महान चरित्र-नायक की शौर्यगाथा
सुपरिचित लेखक डॉ.सुधाकर अदीब का ताजातरीन ऐतिहासिक
उपन्यास “शाने तारीख” पंद्रहवीं शताब्दी के
एक ऐसे चरित्र नायक (शेरशाह सूरी) की शौर्य गाथा है जो अपने आत्मबल, संघर्षशक्ति, और बुद्धि-कौशल के ज़रिये फर्श
से उठकर अर्श तक पहुंचा और जिसने न केवल अपनी अद्भुत कूटनीतिक सूझ-बूझ से तत्कालीन
स्थापित साम्राज्यों को धराशायी कर अपना स्वयं का साम्राज्य स्थापित किया
बल्कि अपनी रियाया के चैन-ओ-अमन के
लिए एक-से-बढ़कर एक बढ़िया इंतजामात किये.
“शाने तारीख़” की पूरा कथा को लेखक ने जिस गहन शोध एवं सम्यक इतिहास दृष्टि
के साथ रोचक शैली में प्रस्तुत किया है वह अपने आप में प्रशंसनीय है. ऐतिहासिक
उपन्यास लिखना कितना जोखिम भरा होता है इसकी एक झलक उपन्यास के पूर्व में दी गई लेखकीय भूमिका के इस
अंश में देखी जा सकती है – “इतिहास-लेखन से अधिक
महत्वपूर्ण होती है इतिहास-दृष्टि. मध्यकालीन भारतीय इतिहास-लेखकों के साथ दिक्कत
यह है कि वह हिंदू-मुस्लिम सभ्यताओं और संस्कृतियों की टकराहट और कालांतर में
उनमें हुए परस्पर विनिमय के द्वंद्व में घिरकर विभिन्न प्रकार के मत-मतान्तर और वैचारिक
पूर्वाग्रह रखते हैं. उसी आधार पर उनका इतिहास-लेखन भी हुआ है.- भूमिका पृष्ठ-.11)
”
सर्वविदित है कि कोई भी ऐतिहासिक उपन्यास अपने आप में इतिहास नहीं होता. “शाने तारीख” भी इतिहास नहीं हैं. पर वह जिस महत्वपूर्ण दस्तावेज को अपनी प्रमुख
आधारभूमि बनाता है वह जरूर इतिहास है यानी अकबर कालींन इतिहास लेखक अब्बास खां
सर्वानी की किताब “ तोह्फत-ए-अकबरशाही ” जिसे आगे जाकर “तारीख-ए-सलातीन अफगान”
के लेखक और इतिहासकार अहमद यादगार ने “तारीख-ए -शेरशाही” का नाम दिया. (सन्दर्भ :
वही भूमिका-प्र.10)
पूरे उपन्यास में फरीद उर्फ़ शेरखान उर्फ़ शेरशाह सूरी के विविध
रूपों को जिस तरह “शाने तारीख” में चित्रित किया गया है वह लेखक की इतिहास दृष्टि और कलात्मक सृष्टि
दोनों की मिली-जुली उपज है, और शायद इसीलिये वह पाठकों को सबसे अधिक आकर्षित भी करता है. वह केवल सत्ता के लिए महत्वाकांक्षी
किसी सामंती चरित्र नायक का ही रूप नहीं हैं बल्कि वह एकाकीपन, गरीबी, अपमान, शोषण, संघर्ष, और
विश्वासघात, की उस पीड़ा का भी प्रतिरूप है
जिससे हो कर आम जनता को आये दिन गुज़रना पड़ता है.
जौनपुर में अध्ययन समाप्त करने के बाद किशोर फरीद जब अपने
पिता
हसन खां द्वारा सहसराम और खवासपुर टांडा, दो जागीरें संभालने की जिम्मेदारी
उसे सौंपे जाने की बात मौलाना वहीद को बताता है तो मौलाना के कहे गए ये चंद शब्द उसके
आगे के सम्पूर्ण जीवन की दिशा को निर्धारित कर देते हैं -
“सचमुच तुम एक ऐसी दुनिया में
अब जा रहे हो जो ऊपर से कुदरती तौर पर बेहद खूबसूरत है पर जिसके भीतर हद दर्जे की
मक्कारी, तिकड़म, ऐयाशी और नाइंसाफी के अँधेरे भी पनाह मांगते हैं. हो सके तो लगान वसूलते समय गाँव के सबसे गरीब
इंसान का चेहरा जब तुम अपनी निगाहों के सामने रखोगे तभी तुम अपनी जागीर की बेहबूदी
के साथ-साथ रियाया के साथ भी सच्चा इन्साफ कर सकोगे : पृष्ठ 52)..........
संभव है कि मौलाना के इन शब्दों के पीछे लेखक की अपनी
दृष्टि भी रही हो जो महात्मा गांधी के
दर्शन के साथ आश्चर्यजनक रूप से मेल खाती है . स्मरण कीजिये गाँधीजी का यह सुप्रसिद्ध कथन –
“ मैं तुम्हे एक जंतर देता
हूँ. जब भी तुम्हे संदेह हो या तुम्हारा अहम् तुम हावी होने लगे, तो यह ”जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शकल
याद करो और अपने दिल से पूछो की जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी
के लिए कितना उपयोगी होगा. क्या ऊससे उसे कुछ लाभ पहुचेगा? क्या उससे वह अपने ही
जीवन और भाग्य पर कुछ काबो रख सकेगा? यानी क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्वराज्य
मिल सकेगा? यानी क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्वराज्य मिल सकेगा जिनके पेट भूखे
हैं और आत्मा अतृप्त है?”
++
“शाने तारीख” की कथा बारह भागों में विभाजित है जिनमें आरम्भ के चार भाग
फरीद से शेरखान बनने तक की संघर्ष-यात्रा से सम्बद्ध हैं तो उससे आगे के चार भाग
बाबर और हुमांयू की शक्तिशाली मुग़ल सल्तनत से टकराने तथा अंतिम चार भाग शेरशाह
सूरी के रूप में स्वयं की सत्ता के चढाव-उतार देखने के बाद उसके चिरनिद्रा में सो
जाने तक की दास्तान हैं.
मूलतः देखा जाए तो सत्ता का स्वभाव निरंकुश होता है.
शायद इसीलिये उसके कार्यान्वयन में अनेक तरह की नृशंसताएं, क्षुद्रताएं, धार्मिक
उन्माद, और कुकृत्यों का समावेश दिखाई पड़ता है पर अपवाद हर जगह होते हैं. शेरशाह सूरी का सत्ताकाल शायद ऐसा ही अपवाद है.
लेखक का भी मानना है कि “शेरशाह एक ऐसा न्यायप्रिय व्यक्ति एवं असाधारण प्रशासक था
जिसने संघर्ष के प्रारंभिक दिनों में अन्याय को कभी भी सहन नहीं किया...
वह एक ऐसा शासक था जिसने भारतीय इतिहास के उस मध्ययुग
में भी एक इकलौते रायसीन के विवादित उदाहरण को छोड़कर, धर्म अथवा मज़हब के नाम पर
कभी कोई अन्याय नहीं किया. आम प्रजाजन के साथ तो
बिलकुल नहीं.”- भूमिका पृष्ठ-12.
शेरशाह सूरी की एक शासक के रूप में यही उदारता उसे
दूसरे शासकों से अलग करती है.
और अंत में वह बात जिसके लिए शेरशाह सूरी को इतिहास
में सदा के लिए याद किया जाएगा – (आज के) बांगला देश-भारत-अफगानिस्तान की सीमाओं को छूती वह
लम्बी सड़क जिसे आज सब जी.टी.रोड के नाम से
जानते हैं. और सिर्फ यह सड़क ही क्यों, उसने अपने शासनकाल में अनेक माकूल जगहों पर वृक्षारोपण,प्याऊ, सराय, और इवादतघरों के
निर्माण भी किया. शायद उस काल की ये सबसे अहम् ज़रूरतें थीं. वर्ना आज जब
भूमंडलीकरण के युग में पीने का पानी तक बोतलों में बिक रहा है, मुफ्त प्याउओं का न
होना शायद ही किसी को अखरता हो.
मैं समझता हूँ, शेरशाह सूरी की संघर्षपूर्ण ज़िन्दगी के विविध
पक्षों को उदघाटित करता लगभग 325 पृष्ठों में फैला यह उपन्यास पाठकों को अपनी दिलचस्प कथा से शुरू से लेकर आखिर तक बांधे रखेगा. एक अच्छे
उपन्यास की सफलता की इससे बढ़कर और क्या निशानी हो सकती है.##
- रमेश तैलंग : 09211688748
506 गौड़गंगा-1,वैशाली, सेक्टर-4,
गाज़ियाबाद – 201012.
समीक्ष्य पुस्तक:
शाने तारीख
लेखक
: सुधाकर अदीब
प्रकाशक
: लोकभारती प्रकाशन पहली मंजिल, दरबारी बिल्डिंग,
महात्मा
गाँधी मार्ग, इलाहाबाद – 21100
संस्करण
– 2013
मूल्य
: पेपरबैक: 300 रूपये