नक्को! नक्को!
बिस्तर बोला- सोजा, सो जा
मैं बोली नक्को! नक्को!
उठी, सैर को चलदी,लौटी
भरे ताजगी फिर घर को.
सूरज ने सिंदूर दिया जो,
एक पुडिया में बाँध लिया
मिला धूप का छौना, उसको
गोदी में भर प्यार किया
कहा फूल ने - कल फिर आना,
मैं बोली - पक्को! पक्को!
छत के नल को बहते देखा,.
उसका पानी बंद किया
घर वालों के संग बैठी फिर
छुट्टी का आनंद लिया
काम बटाया सबका थोडा
बदन हुआ -थक्को! थक्को!
- रमेश तैलंग /12/03/2018
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